पूर्व प्रधान मंत्री वी पी सिंह इन दिनों पता नही कितनी खामोशी ओढे हैं। मेरी उनसे कई अच्छी मुलाकात है और प्रेस क्लब गोरखपुर का प्रेसीडेंट रहते हुए मैंने उन्हें दो बार समारोह आयोजित करके आमंत्रित किया। राजनीतिक रूप से उनके कई फैसलों का मैं विरोधी रहा हू। लेकिन उनकी कविता और पेंटिंग मुझे प्रभावित करती है। वी पी सिंह कुछ मुद्दों पर खास अभियान चलाते हैं। अभी मुम्बई में जो कुछ हुआ उसमें उनकी खामोशी ने उनकी सेहत के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया। दैल्सिस पर उन्हें बार बार जाना पङता है। फिर भी उनकी इच्छा शक्ती बड़ी है। ८ साल पहले वे गोरखपुर में किसानों के एक आन्दोलन में भाग लेने आए। प्रेस क्लब की सराहना करने लगे। प्रेस क्लब में वे पहले भी आ चुके थे। राजीव ओझा उनके आने के हिमायती थे लेकिन वागीश जी नही चाहते थे की वी पी सिंह आयें। वागीश जी को मनाया गया और वार्सिकोत्सव में आ रहेसुपरिचित लेखक अब्दुल बिस्मिल्लाह से भी सहमति ली गयी। उन दिनों गोरखपुर बाढ़ की चपेट में था। वी पी सिंह बाढ़ पर खूब मार्मिक बोले और राजेश सिंह बसर के गजल संग्रह एक ही चेहरा का लोकार्पदभी किए। बसर साहब ने अपनी गजलों में संवेदना का नया धरातल बनाया है। उनकी एक रचना वी पी सिंह को बहुत पसंद आयी- छत पे बैठे कुछ परिंदे क्यों अचानक उड़ गए। क्या कहीं गोली चली या बम फटा मेरे शहर में। अब सोच रहा हू वी पी सिंह की खोज ख़बर लीजाए।
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