11 फ़र॰ 2008

अपनों से ही छल

उसके हिस्सेमें पता नही कितना दर्द है पर इतना जरूर है कि कुछ सुनाते हुए उसकी आँख डबडबा जाती है। सेवा वालों ने एक तस्कर के चंगुल से उसे मुक्त कराया था। कई दफे उससे बातचीत की पर उसने अपनी जुबान नही खोली। एक बार बहुत कुरेदा तो वह फफक पड़ी। अपने ही सगे से ठगी गयी थी। उसका अपना सगा चाचा था जिसने चंद पैसे के लिए उसे बेच दिया। उत्तर प्रदेश के महराजगंज जिले में सरहदी इलाका सोनौली से होकर वह गोरखपुर आई थी। गोरखपुर में एक होटल में उसे कई दिनों तक जिस्म के भूखे भेडिये नोचते रहे। सेवा के निदेशक जटाशंकर को उसकी खबर मिली। फिर लोकल पुलिस के सहयोग से वह बरामद हुई। प्रकोस्थ पर जाने के बाद गुमसुम सी चुप बैठी रही। बोली तो आँखों से अविरल गंगा-यमुना बही। वह अपने वतन नेपाल नही जाना चाहती थी। जीवन में जब भी उसने सपने संजोये उसे गम का पहाड़ उठाना पड़ा। एक बार प्रेमी ने भी खूब सपने दिखाए। घर में बुजुर्ग माँ ने लड़के कि सादगी पर भरोसा जताया। वह बेरोक टोक घर में आता रहा । एक दिन नशे में धुत होकर अपने एक साथी के साथ आया और उस रात पहली बार उसके सपनों के टुकड़े-टुकड़े हो गए। बिअना शादी के माँ बन जाती मगर यह खबर उसके चाचा को लगी। बाप के मरनें के बाद कभी कभार इस चाचा ने ही मदद की थी। उसनें अबराशन के लिए कुछ पैसे खर्च किये और फिर उसपर बुरी नज़र रखनें लगा। एक दिन कलयुगी चाचा ने अपनी बेटी को अपनी हवस का शिकार बनाया। फिर उसकी दलाली करनें लगा। अचानक एक दिन उसे कहा गया की मुम्बई में उसकी नौकरी लग जायेगी। गरीबी के बोझ से दुहरी हुई माँ ने kaha बेटी परदेश में कुछ तो कमायेगी। वह जानती थी कि जो हो रहा है उससे जीवन की गति ठहर जायेगी पर माँ ने कहा था। वह नौकरी पाने कि चाह में आयी जरूर लेकिन गोरखपुर में आते ही उसके साथ फिर वही सिलसिला शुरू हो गया। पकडी गयी तो तमाशा भी बनी लेकिन सेवा के साथियों ने उसे लड़ने की ताकत दी। पर उसके दिलों में इतना दार समाया था कि वापस अपने मुल्क जाना ही नही चाहती थी। जटाशंकर की प्रेरणा से वापस गयी और अपने जैसों की लड़ाई लड़ रही है। अब लोग यह भी नही जानते की उसके साथ भी कभी ऐसा हुआ था। पर जब भी वह अकेलेल में होती या अपनों का साथ मिलता पुरानी yaad ताजा हो जाती।

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