1 मार्च 2012

अवधेश के आंसू का असर बता पाना मुश्किल

सीतापुर-शाहजहांपुर रोड पर चकभिटारा चौराहा है। यहीं से एक सड़क निकलती है जो रेलवे क्रासिंग पार कर कहलिया तक जाती है। कहलिया प्रदेश सरकार के बर्खास्त मंत्री अवधेश वर्मा का गांव है। वही अवधेश वर्मा जो बसपा से टिकट कटने पर फूट-फूट कर रोने लगे और उनका आंसू देखकर भाजपा पिघल गई। पर कहलिया जाकर भी यह बता पाना मुश्किल है कि अवधेश के आंसू मतदाताओं के दिल पर कितना असर कर पाये हैं। सियासी रुख को लेकर उठे सवाल पर रास्ते में ही मिले मुंशीलाल कहते हैं कि अभी कोई पतो नहीं, सब गुप्ते दान हो। गांव के कई लोग तो कुछ भी कहने से इंकार कर देते हैं।

ददरौल में बसपा के टिकट पर दो बार जीते और मंत्री बनने वाले अवधेश वर्मा अक्सर सुर्खियों में रहे हैं। वर्मा की हैट्रिक न बने, इसलिए सभी दलों ने समीकरण बिठाए हैं। मसलन सपा ने उनकी ही जाति के कद्दावर नेता, पूर्व मंत्री और पूर्व सांसद राममूर्ति वर्मा को सामने खड़ा कर दिया है, जबकि बसपा ने इस दफा मुस्लिम फेस पर दांव लगाते हुए रिजवान अली को मौका दिया है। कांग्रेस से कौशल मिश्रा, पीस पार्टी ने अरविन्द पाल और महान दल ने पूर्व विधायक देवेन्द्र पाल सिंह को टिकट दिया है। यहां छोटे दलों और निर्दलियों समेत कुल 16 उम्मीदवार हैं।

ददरौल की सियासी लड़ाई भी जातियों के बीच सिमटी हुई है। अवधेश वर्मा भाजपा के उम्मीदवार हो गये हैं, लेकिन इस दल के परंपरागत ब्रांाण मतों पर कांग्रेस के कौशल मिश्रा अपना हक जता रहे हैं। बसपा के रिजवान अली ने दलित और मुसलमानों के गठजोड़ से लड़ाई को रोमांचक कर दिया है। लेकिन सर्वाधिक सेंधमारी पीस पार्टी के अरविन्द पाल कर रहे हैं। इलाके में गड़रिया मतदाताओं की भी अच्छी संख्या है, इसलिए पाल अपनी जाति के साथ पीस पार्टी के मुस्लिम मतों पर भरोसा किये बैठे हैं। महान दल के साथ कुशवाहा और मौर्या जाति का आधार है, जबकि इसके उम्मीदवार देवेन्द्र पाल सिंह ने ठाकुरों को लामबंद करना शुरू किया है। जातीय गोलबंदी के बीच दलीय जनाधार के भी मायने तलाशे जा रहे हैं। सभी दलों के बड़े नेता भी उम्मीदवारों का माहौल बनाकर जा चुके हैं, लेकिन किसी के आने से कोई हवा नहीं बनी है। बहादुरपुर के वेदराम वर्मा कहते हैं कि कोई आए और कोई जाए, हवा नहीं बहनी है। मर्जी है वोटर की, चाहे जिस ओर ले जाए। यकीनन वोटर की मर्जी से हवा बहनी है, लेकिन उसकी खामोशी ने कयासों की बुनियाद हिला दी है। खेतिहर रामचंद्र वर्मा से जब उनकी जाति का हवाला देकर अवधेश के बारे में बात की गयी तो वह राममूर्ति वर्मा का भी नाम गिनाते हैं। पर किसके पक्ष में हैं, यह नहीं बताते। लेकिन दुकानदार महीपाल का कहना है कि हम तो साफ कहों, इहां दुइए की हवा है। एक ठो साइकिल और दूसरी हाथी। ददरौल में चुनाव को लेकर कोई उत्साह नहीं दिखता है, लेकिन सड़कों पर दौड़ रही उम्मीदवारों की गाडि़यां सियासी गर्मी पैदा करने की कोशिश कर रही हैं। एक निर्दल उम्मीदवार की शिकायत रहती है कि मैं इतना मजबूत प्रत्याशी हूं, लेकिन मीडिया मेरी नोटिस नहीं ले रहा है। हालांकि उनके जाते ही पीछे खड़े कई युवा उनको खारिज कर देते हैं। बड़े दलों के बारे में मतदाता अपना मंतव्य भले स्पष्ट न करें, लेकिन निर्दलीय और छोटे दलों के कई उम्मीदवारों को लोग वोटकटवा कहने से भी नहीं चूक रहे हैं। कहलिया, अकबरपुर, कटरा, जलालाबाद, मदनापुर, कांठ, सेहरामऊ समेत हर जगह एक ही जैसा माहौल दिखता है। अंतर सिर्फ यही कि कहीं किसी का प्रभाव ज्यादा तो कहीं किसी का।

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