26 जन॰ 2010

पूर्वजों का शौर्य देख रोमांचित हो गए पिण्डारी

आनन्द राय, गोरखपुर
इतिहास की बुनियाद और कल्पना के सहारे पिण्डारियों की शौर्य गाथा पर बनी फिल्म वीर को पूर्वाचल में ऐतिहासिक सलामी मिली। हाड़ कंपा देने वाली ठण्ड में भी यहां के सिनेमा हाल गरम हो गये। जुमे की नमाज की वजह से पिण्डारी दिन का शो नहीं देख सके। दोस्तों के साथ पिण्डारी मुखिया ने रात का शो देखा। पर्दे पर पिण्डारियों की शौर्य गाथा देखकर वे लोग रोमांचित हो गये।
 फिल्म वीर पूर्वाचल में इसलिए बेहद प्रांसगिक हो गयी क्योंकि अंग्रेजों ने समझौते के तहत पिण्डारी सरदार करीम खां को गोरखपुर के सिकरीगंज में जागीर देकर बसाया। अब उनकी वंश बेल दूर दूर तक फैल गयी है। इस ऐतिहासिक तथ्य को दैनिक जागरण ने 21 जनवरी के अंक में उजागर किया इसलिए सिनेमा घरों पर दर्शक उमड़ पड़े। पिण्डारी परिवार के मुखिया अब्दुल रहमत करीम खां और अब्दुल माबूद करीम खां जुमे की वजह से दिन में नहीं जा पाये लेकिन रात को एसआरएस में शो देखा। एक एक दृश्य पर उन लोगों की निगाह जमी थी। पहले उन लोगों ने तय किया था कि यदि फिल्म में उनके पूर्वजों पर कोई व्यक्तिगत टिप्पणी हुई तो न्यायालय का दरवाजा खटखटायेंगे। पूरी फिल्म पिण्डारी कौम की शौर्य गाथा को प्रदर्शित कर रही है इसलिए उन लोगों की खुशी बढ़ गयी।
फिल्म वीर में पिण्डारियों के कबीले में हिन्दू मुसलमान दोनों दिखे। फिल्म में हैदर अली पिण्डारियों के सरदार हैं जबकि पूरी फिल्म की कहानी पिण्डारी पृथ्वी सिंह के पुत्र वीर के इर्द गिर्द ही घूमती है। फिल्म में इस बात को झुठलाने की कोशिश की गयी है कि पिण्डारी अमानवीय, बेहद क्रूर और अराजक थे। माधवगढ़ की युवराज्ञी यशोधरा से प्रेम की शुरूआत ही लूटपाट करने गये वीर के मानवीय गुणों से होती है। पिण्डारी परिवार के रहमत खां और माबूद खां यह सुनना पसंद नहीं करते हैं कि पिण्डारी लुटेरे और क्रूर थे। उनका कहना है कि पिण्डारी कौम हमेशा से बहादुर थी, अन्याय के खिलाफ लड़ी । उन लोगों का कहना है कि फिल्म में हमारी सही समीक्षा की गयी है। फिल्म की बारीकियों पर नजर रखने वाले सिनेमा वितरक अख्तर हुसैन अंसारी कहते हैं कि वीर फिल्म में इतिहास के कुछ जीवित संदर्भ हैं लेकिन काल्पनिक जिंदगी की तस्वीरें सब पर भारी है।
यह रपट २३ जनवरी के अंक में दैनिक जागरण ने प्रमुखता से प्रकाशित किया है.
परवान चढ़ रही पिण्डारियों की सक्रियता
आनन्द राय , गोरखपुर: अंग्रेजों की कूटनीति से बिछड़ गये पिण्डारी अब मिलने लगे हैं। एक दूसरे से जुड़ने का सिलसिला शुरू हो गया है। ऐतिहासिक तथ्यों की गड़बड़ी को सही करने की दिशा में भी उनकी सक्रियता परवान चढ़ रही है। पिण्डारी अब इस बात का दावा करने लगे हैं कि सियासी चाल के तहत उनके इतिहास को कलंकित कर उन्हें लुटेरा लिखा गया। वीर फिल्म से चर्चा में आये पिण्डारियों के बारे में जब दैनिक जागरण ने सिलसिलेवार खबरों का प्रकाशन शुरू किया तो वे लोग सक्रिय होने लगे। पिण्डारी मुखिया अब्दुल रहमत करीम खां का कहना है कि अंग्रेजों ने एक योजना के तहत हम लोगों को अलग अलग बिखेर दिया और कई लोगों के मरने की झूठी खबर फैला दी। उनका कहना है कि जैसे गनेशपुर में चीतू खां के मरने के झूठे इतिहास का सच उजागर हो गया उसी तरह और भी कई सच सामने आने बाकी हैं। उन्होंने यह कयास लगाया है कि जिस वसील मोहम्मद को गाजीपुर के जेल में मरने की बात इतिहास में कही गयी है, हो सकता है कि वह भी झूठ हो और उनके भी वंशज गाजीपुर में हों। ध्यान रहे कि इतिहास में यह पढ़ाया जाता है कि पिण्डारियों के सरदार करीम खां ने जब अंग्रेजों के सामने समर्पण कर दिया तब उन्हें गौशपुर में बसाया गया। चीतू खां को जंगल में चीता खा गया जबकि वसील मोहम्मद गाजीपुर जेल में बंद किये गये जहां उनकी मौत हो गयी। बस्ती के डा. सलीम अहमद पिण्डारी ने इस झूठे तथ्य से पर्दा उठाया कि कादिर बख्श खान उर्फ चीतू खान जंगल में चीता के मारने से नहीं मरे बल्कि गनेशपुर में बहुत दिनों तक सामान्य जिंदगी जिये। अब गनेशपुर में उनके वंशज समाज की मुख्यधारा से कदमताल कर रहे हैं। सरदार करीम खां ने अपने जिंदगी की नयी शुरूआत सिकरीगंज के नवाबहाता से की जहां उनकी मजार है। देवरिया जिले के खुखुंद गांव से अब डा. शमीम सामने आये हैं। उन्होंने कहा है कि उन लोगों के साथ बेहद नाइंसाफी हुई। उन लोगों को घुमंतू जाति में शामिल कर दिया गया। डा. शमीम के मुताबिक वे लोग लुकमान पिण्डारी के वंशज हैं। लुकमान भी बहादुर योद्धा थे। शुरू में जिन्हें जौनपुर के सोहौली गांव में बसाया गया, बाद में वे लोग देवरिया जिले में आ गये। डा. शमीम कहते हैं कि हम लोग पढ़े लिखे और बलशाली लोग हैं जो हमेशा समाज में सक्रिय भूमिका निभाते हैं। पिण्डारी आंदोलन के प्रवक्ता माबूद अहमद करीम खां कहते हैं कि हम अपने मुखिया अब्दुल रहमत करीम खां के निर्देश पर सभी पिण्डारियों को जोड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि बस्ती के डा. सलीम पिण्डारी हम लोगों के रिश्तेदार हैं। दूसरे और भी लोग हम लोगों से जुड़े हैं। लोगों के खुलकर आने से हमारी ताकत बढ़ रही है। एक विशेष समारोह के बाद हम लोग मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और राज्यपाल के साथ ही चेयरमैन भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद को पत्रक सौंपेंगे और इतिहास के गलत तथ्य को मिटाने की मांग करेंगे।
यह खबर १ फरवरी को दैनिक जागरण गोरखपुर में पेज ५ पर छपी है.

1 टिप्पणी:

prashant ने कहा…

hello sir accha laga.aap kaa news maine pepar me padha tha.mai bansgaon gorakhpur kaa blogger prashant
successbt.blogspot.com

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