26 जन॰ 2010

पिण्डारी चीतू खां के जंगल में मरने का तथ्य झूठा

आनन्द  राय  , गोरखपुर :

इतिहास में पिण्डारियों को लुटेरा कहे जाने के खिलाफ पिण्डारी सरदार करीम खां के वंशज अब्दुल रहमत करीम खां और अब्दुल माबूद करीम खां द्वारा शुरू किये गये संघर्ष की लौ तेज हो गयी है। बस्ती के डा. सलीम अहमद पिण्डारी ने इस अभियान को आगे बढ़ाने का फैसला किया है और कहा है कि अब यह मशाल लखनऊ, टोंक और भोपाल तक जलेगी। डा. सलीम खां की माने तो वे उसी पिण्डारी सरदार चीतू खां के वंशज हैं, जिनके बारे में इतिहास में दर्ज हो गया कि चीतू को जंगल का चीता खा गया। जंगल में उनके मरने का तथ्य झूठा है।
  पिण्डारी सरदार करीम खां की पांचवीं पीढ़ी के वंशज रहमत करीम खां और माबूद करीम खां ने इतिहास में सही तथ्य दर्ज करने के लिए प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को सम्बोधित पत्र को लेकर सोमवार से हस्ताक्षर अभियान शुरू किया है। यह चिट्ठी अभी गोरखपुर से आगे नहीं बढ़ी है लेकिन बस्ती के डा. सलीम अहमद पिण्डारी ने भी इतिहास के गलत तथ्यों को मिटाने का बीड़ा उठा लिया है। उन्होंने कहा है कि रहमत करीम खां हमारे परिवार के हैं।
   उन्होंने दावा किया कि हमारी कौम आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों से लड़ी और बहादुरी से लड़ी। उन्होंने बताया कि चीतू खां का असली नाम कादिर बख्श था। 1816 से 1818 तक लखनऊ में वे लार्ड हेस्टिंग्स की सेना से लड़े। 1920 में उन्हें भी समझौते के तहत बस्ती जिले से सात किलोमीटर दूर गनेशपुर में ससम्मान बसाया गया। कादिर बख्श के पुत्र खादिम हुसैन को दो बेटे खान बहादुर नवाब गुलाम हुसैन और नवाब गुलाम मुहम्मद हुये। डा. सलीम पिण्डारी नवाब गुलाम हुसैन के इकलौते पुत्र नवाब सैदा हुसैन के पुत्र हैं। चीतू की पांचवीं पीढ़ी के डा. सलीम को सदा से पिण्डारी होने का गर्व है इसीलिए उन्होंने बस्ती में अपने अस्पताल का नाम पिण्डारी हास्पीटल रखा। डा. सलीम कहते हैं कि हमारे पूर्वजों ने अंग्रेजों से इतनी जबर्दस्त लड़ाई लड़ी कि उन्हें हमारे आगे झुकना पड़ा। उन्होंने बताया कि 4 जून 1928 को यूके में मेरे दादा खान बहादुर गुलाम हुसैन को सम्मानित किया गया। इसके अलावा 12 मई 1937 को ब्रिटिश महारानी ने भी उनका सम्मान किया। उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वजों की लड़ाई का परिणाम रहा कि देश को आजादी मिली। इतिहास में गलत ढंग से तथ्यों को तोड़ा मरोड़ा गया है। अब गनेशपुर के जर्रार अहमद पिण्डारी, अब्दुल्ला पिण्डारी, अब्दुल रहमान, अब्दुल रहीम और आसिल पिण्डारी भी अपने सम्मान के लिए शुरू हुये आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभायेंगे।
यह रपट दैनिक जागरण गोरखपुर समेत कई संस्करणों में २६ जनवरी को  छपी है.

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