10 जन॰ 2010

वो तो गली-गली सबको पढ़ाने लगी


आनन्द राय, गोरखपुर
 यह कहानी अशिक्षा के अंधकार में शोषण का शिकार हो रही महिलाओं के लिए प्रेरणा है। यह कहानी अनुसूचित जाति में जन्मी 35 साल की मीना की है जो कभी अनपढ़ थी लेकिन अब अपने गांव जवार में मेम बन गयी है। लिखने-पढ़ने की उसे ऐसी लगन लगी कि अब वो गली गली सबको पढ़ाने लगी है। उसने सौ से अधिक महिलाओं को लिखना-पढ़ना सिखा दिया है। वह महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक कर रही है।
  गहिरा गांव के श्रीकांत की बेटी मीना 22 साल पहले पिपराइच क्षेत्र के मोहनपुर गांव में राजदेव भारती के साथ ब्याही गयी। तब वह निरक्षर थी। ससुराल में बहुत साल तक चौके चूल्हे की तपिश सहती रही। मौके बे मौके पति से पिटती रही। पर एक दिन उसके मन में भी पढ़ने की कसक हुई। वर्ष 2000 में महिला समाख्या ने मोहनपुर में साक्षरता कैम्प लगाया। पति के रोकने के बावजूद प्रतिरोध करके वह इस कैम्प में गयी। उसकी लगन देखकर महिला समाख्या की समन्वयक शगुफ्ता ने जिले पर लगे कैम्प में उसे विशेष प्रशिक्षण दिया। अल्प अवधि में उसका ज्ञान कक्षा आठ के बराबर हो गया। इसके बाद उसे अनुदेशक बना दिया गया।
  मीना ने मोहनपुर, मलपुर, गोपालपुर, पिपरा बसंत आदि गांवों में कैम्प लगाकर अनुसूचित जाति की अनपढ़ महिलाओं को साक्षर बनाना शुरू कर दिया। आस पास के गांव की महिलाओं के बीच अब मीना मेम की इज्जत बढ़ गयी है। लोग उसे आदर देते हैं। मीना पंचायतों में भी जाती है। नारी अदालत में औरत के ऊपर हुये अत्याचार पर केन्दि्रत होकर जब वह उनके पतियों को कानून का पाठ पढ़ाती है तो लोग दांतों तले अंगुली दबा लेते हैं। उसकी पहल और फैसलों ने कई घरों को टूटने और बिखरने से बचा लिया है। उसकी दिलेरी की लोग दाद देते हैं। गांव गांव में शराब के विरोध में उसने अभियान चला दिया है। वह सुशिक्षित समाज के अगुवा के रूप में स्थापित हो रही है। उसे मानव अधिकार और कानून की धाराओं का भी ज्ञान हो गया है। मीना की सक्रियता देखकर और भी कई महिलाओं को पढने पढ़ाने का मन हो रहा है। गोपालपुर की आरती का कहना है कि मीना दीदी ने हमे लिखना पढ़ना सिखाकर हमारी जिंदगी बदल दी है।
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