आचार्य हरिहर प्रसाद कृपालु त्रिपाठी जबसे काशी विश्वनाथ मन्दिर न्यास के अध्यक्ष हुए हैं तबसे मन्दिर का कायाकल्प शुरू हो गया है। भविष्य द्रष्टा आचार्य जी में रचनात्मकता कूट कूट कर भरी है। उनके प्रयास से बहुतों की जिन्दगी में सुख शान्ति आयी है। उनके भक्तों की लम्बी श्रृंख्ला है। वे भविष्य भूत और वर्तमान के ज्ञाता है।
डा. सीमा जावेद लखनऊ, 4 जुलाई : काशी विश्र्वनाथ मंदिर का पुराना स्वरूप फिर वापस होगा। मंदिर को अपने ऊपर चढ़े नकली एनेमल पेंट से जल्द मुक्ति मिलेगी। इसके लिए राष्ट्रीय संपदा संरक्षण प्रयोगशाला की टीम काशी पहुंच रही है, जो कई मर्तबा एनेमल पेंट के चढ़ने से मंदिर के पत्थरों को हुए नुकसान का आंकलन करेगी और पेंट हटाने की कार्ययोजना तैयार करेगी। बाबा भोले की नगरी के रूप में विख्यात काशी दुनिया का सबसे पुराना एकमात्र ऐसा शहर है, जिसका 3500 वर्ष पुराना लिखित इतिहास मौजूद है। यहां गंगा के पश्चिमी घाट पर भगवान शिव के बारह ज्योर्तिलिंग में से एक विश्र्वेश्र्वर लिंग पर काशी विश्र्वनाथ का मंदिर है। इसे इंदौर की महारानी अहिल्या बाई होलकर ने 1780 में सैंड स्टोन पत्थरों से बनवाया था। 1785 में उस समय काशी के कलेक्टर इब्राहिम खान ने मंदिर के आगे नौबतखाना बनवाया। सन् 1839 पंजाब के महाराजा रंजीत सिंह ने 1000 किलो सोना इसके दो गुम्बदों पर चढ़वाया। आदि शंकराचार्य, गोस्वामी तुलसीदास, स्वामी विवेकानंद आदि महापुरुष बाबा विश्र्वनाथ के दर्शन करके धन्य हुए। 28 जनवरी 1983 से प्रबंधन की कमान सरकार ने अपने हाथ में ले ली। सिटीजन फोरम के महासचिव शतरुद्ध प्रकाश ने बताया कि 2005 में वाराणसी के तत्कालीन कमिश्नर सीएम दुबे ने इन पुराने सैंड स्टोन पत्थरों पर एनेमल पेंट का मुलम्मा चढ़वा दिया। इस पर मची हाय तौबा के बावजूद उन्होने 2006 में दोबारा पेंट चढ़वा दिया। श्री काशी मंदिर न्यास परिषद द्वारा इस बारे में राज्य पुरातत्व विभाग से की गई पूछ-ताछ में विभाग के निदेशक डा. राकेश पांडे ने जानकारी दी कि सैंड स्टोन पत्थर पोरस होने से उनमें छिद्र होते हैं। इन छिद्रों के जरिये यह पत्थर सांस लेते हैं। एनेमल पेंट चढ़ने से यह छिद्र बंद हो गये, जो इस संरक्षित धरोहर के मूल स्वरूप के लिए खतरा है। इससे मंदिर का ढांचा क्षतिग्रस्त हो सकता है। इस मुलम्मे को उतरवाने के लिए श्री मंदिर न्यास परिषद के अध्यक्ष हरिहर कृपालु, काशी के डीएम एके उपाध्याय, एडीएम अनिल कुमार पांडे लगातार प्रयास कर रहे हैं। राष्ट्रीय संपदा संरक्षण प्रयोगशाला के निदेशक एमवी नय्यर ने बताया कि वरिष्ठ तकनीकी पुर्नस्थापक विरेंद्र कुमार के नेतृत्व में टीम काशी जाकर इस एनेमल पेंट से सैंड स्टोन को हुए नुकसान का अध्ययन और फिर उसके नमूने लेकर प्रयोगशाला में उनका परीक्षण करेगी। इस परीक्षण से नुकसान का आंकलन करके आगे की कार्ययोजना तैयार होगी।
डा. सीमा जावेद लखनऊ, 4 जुलाई : काशी विश्र्वनाथ मंदिर का पुराना स्वरूप फिर वापस होगा। मंदिर को अपने ऊपर चढ़े नकली एनेमल पेंट से जल्द मुक्ति मिलेगी। इसके लिए राष्ट्रीय संपदा संरक्षण प्रयोगशाला की टीम काशी पहुंच रही है, जो कई मर्तबा एनेमल पेंट के चढ़ने से मंदिर के पत्थरों को हुए नुकसान का आंकलन करेगी और पेंट हटाने की कार्ययोजना तैयार करेगी। बाबा भोले की नगरी के रूप में विख्यात काशी दुनिया का सबसे पुराना एकमात्र ऐसा शहर है, जिसका 3500 वर्ष पुराना लिखित इतिहास मौजूद है। यहां गंगा के पश्चिमी घाट पर भगवान शिव के बारह ज्योर्तिलिंग में से एक विश्र्वेश्र्वर लिंग पर काशी विश्र्वनाथ का मंदिर है। इसे इंदौर की महारानी अहिल्या बाई होलकर ने 1780 में सैंड स्टोन पत्थरों से बनवाया था। 1785 में उस समय काशी के कलेक्टर इब्राहिम खान ने मंदिर के आगे नौबतखाना बनवाया। सन् 1839 पंजाब के महाराजा रंजीत सिंह ने 1000 किलो सोना इसके दो गुम्बदों पर चढ़वाया। आदि शंकराचार्य, गोस्वामी तुलसीदास, स्वामी विवेकानंद आदि महापुरुष बाबा विश्र्वनाथ के दर्शन करके धन्य हुए। 28 जनवरी 1983 से प्रबंधन की कमान सरकार ने अपने हाथ में ले ली। सिटीजन फोरम के महासचिव शतरुद्ध प्रकाश ने बताया कि 2005 में वाराणसी के तत्कालीन कमिश्नर सीएम दुबे ने इन पुराने सैंड स्टोन पत्थरों पर एनेमल पेंट का मुलम्मा चढ़वा दिया। इस पर मची हाय तौबा के बावजूद उन्होने 2006 में दोबारा पेंट चढ़वा दिया। श्री काशी मंदिर न्यास परिषद द्वारा इस बारे में राज्य पुरातत्व विभाग से की गई पूछ-ताछ में विभाग के निदेशक डा. राकेश पांडे ने जानकारी दी कि सैंड स्टोन पत्थर पोरस होने से उनमें छिद्र होते हैं। इन छिद्रों के जरिये यह पत्थर सांस लेते हैं। एनेमल पेंट चढ़ने से यह छिद्र बंद हो गये, जो इस संरक्षित धरोहर के मूल स्वरूप के लिए खतरा है। इससे मंदिर का ढांचा क्षतिग्रस्त हो सकता है। इस मुलम्मे को उतरवाने के लिए श्री मंदिर न्यास परिषद के अध्यक्ष हरिहर कृपालु, काशी के डीएम एके उपाध्याय, एडीएम अनिल कुमार पांडे लगातार प्रयास कर रहे हैं। राष्ट्रीय संपदा संरक्षण प्रयोगशाला के निदेशक एमवी नय्यर ने बताया कि वरिष्ठ तकनीकी पुर्नस्थापक विरेंद्र कुमार के नेतृत्व में टीम काशी जाकर इस एनेमल पेंट से सैंड स्टोन को हुए नुकसान का अध्ययन और फिर उसके नमूने लेकर प्रयोगशाला में उनका परीक्षण करेगी। इस परीक्षण से नुकसान का आंकलन करके आगे की कार्ययोजना तैयार होगी।
1 टिप्पणी:
चलिये, बढ़िया है.
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