आनन्द राय, गोरखपुर
कुदरत ने उनके साथ छल किया है। उनमें किसी की आंखों का नूर, किसी के पैरों की ताकत और किसी के सुनने की शक्ति छीन ली है। बहुतों के पास जुबान तो है पर बोल नहीं पाते। इस बार वे सब प्राइमरी की परीक्षा में सामान्य बच्चों के साथ बैठे और अपने हुनर की छाप छोड़ी। अपने हौसलों के बल पर उनमें मुख्य धारा से जुड़ने की आस बंध गयी है। मंजिल की तलाश में अब इनके संघर्ष का कारवां आगे बढ़ रहा है। गोरखपुर जिले में 2008-09 में कुल 869335 बच्चों का नामांकन हैं इनमें 5380 बच्चे अक्षम हैं। शारीरिक अक्षमता और मां-बाप की आर्थिक तंगी उनकी बदकिस्मती है। ऊपर से कभी खत्म न होने वाला तानों और उलाहनों का सिलसिला भी बदस्तूर जारी है। दिन काटना मुश्किल है। इन सबके बावजूद ये सभी बच्चे लिख पढ़ रहे हैं और इनमें मुख्य धारा में शामिल होने की छटपटाहट है। भटहट क्षेत्र के प्राथमिक विद्यालय चकिया में कक्षा एक के आठ साल का नीरज श्रवण दोष से बाधित है। उसकी दुनिया स्कूल जाते ही बदल गयी। दो माह के अंदर ही उसने इतना कुछ सीख लिया कि अन्य दूसरे बच्चों के बराबर उसका शैक्षिक ज्ञान हो गया। उसके पिता अशोक कुमार महज पांचवीं तक पास हैं। सुनने में अक्षम सात साल की सुधा इसी विद्यालय में कक्षा एक की छात्रा है और उसका मानसिक स्तर बहुत अच्छा है। वह श्रवण यंत्र का प्रयोग करती है। पिता सदानन्द को अब उस पर भरोसा है। यद्यपि उसे बोलने में अभी भी परेशानी है लेकिन अपने हौसले के बल पर अपनी पढ़ाई की गति तेज की है। पिपरौली विकास खण्ड के प्राथमिक विद्यालय शेरगढ़ में कक्षा पंाच में पढ़ने वाले 11 साल के सुजीत की आंखों ने जन्म से ही उसे दगा दे दिया। पर वह न केवल अपने दैनिक जीवन की क्रियाओं को अंजाम देता है बल्कि पैसों का अंतर भी समझता है। गांव में खरीददारी भी करने जाता है। वह ब्रेल पढ़ लेता है और विभिन्न चिन्हों को समझ लेता है। ये बच्चे कुछ बनना चाहते हैं। इनकी चाहतों में कोई बड़ा सपना भले न हो लेकिन ये किसी के लिए बोझ नहीं बनना चाहते । प्राथमिक विद्यालय रेतवहिया में कक्षा दो में पढ़ने वाले दिवाकर को श्रवण दोष है। वह कुछ तीव्र ध्वनियों को सुन लेता है। यद्यपि उसका भाषा विकास श्रवण बाधित होने के नाते प्रभावित है। फिर भी वह अपनी कक्षा में विशेष प्रस्तुति से एक मुकाम बनाये है। प्राथमिक विद्यालय सरैया में कक्षा पांच में पढ़ने वाली प्रतिभा को अति गंभीर श्रेणी का श्रवण दोष है लेकिन मन में एक तमन्ना है कि पढ़ लिखकर कुछ बनना है इसलिए वह निरंतर संघर्ष कर रही है। 11 साल की प्रतिभा के हुनर के सभी कायल हैं। प्राथमिक विद्यालय नवीपुर में कक्षा एक की छात्रा रेहाना बराबर स्कूल जाती है। वह सुनने के लिए श्रवण यंत्र का प्रयोग करती है और अब पढ़ाई में उसका मन रम गया है। भौवापार टोटहां निवासी महेन्द्र का 16 वर्षीय बेटा संतोष कक्षा पांच में पढ़ता है। वह ब्रेल के माध्यम से पढ़ने लगा है । बड़गहन में कक्षा छह में पढ़ने वाली गुडडन दृष्टिबाधित है। पिता नौकरी करते हैं इसलिए उसके प्रति थोड़े जागरूक हैं। वह सभी तकनीकों का ज्ञान रखती है तथा चलने फिरने में उसका सही इस्तेमाल करती है। वह ब्रेल के माध्यम से लिखती पढ़ती है। इसी गांव में कक्षा चार की रिंकू पूर्ण रूप से दृष्टि बाधित है। पिता मजदूरी करते हैं। पढ़ाई में वह तेज है। चनऊ बाघागाढ़ा की पुष्पा कक्षा आठ में पढ़ती है और पूरी तरह से दृष्टिबाधित है। पर पढ़ाई में उसकी गति तेज हो गयी है। आठ वर्ष की कुमारी चन्दि्रका प्राथमिक विद्यालय हजारीपुर नवीन में कक्षा दो में पढ़ती है। उसकी भी पढ़ाई बेहतर है। प्राथमिक विद्यालय हजारीपुर नवीन में कक्षा दो में पढ़ने वाला दस साल का आकाश माडरेड कटेगरी का छात्र है। हुमायूंपुर उत्तरी में रहने वाले उसके पिता जयगोविन्द और मां राजकुमारी मजदूरी करते हैं। इसके छह अन्य भाई बहन हैं जिसमें एक खूशबु भी उसी की तरह है। वह कक्षा तीन में पढ़ती है। आकाश ने ने लिखने पढ़ने की दिशा में ध्यान दिया और अब वह और उसकी बहन अन्य बच्चों की तरह मुख्य धारा से जुड़ गये हैं।ये सभी बच्चे उनके लिए प्रेरणास्रोत हैं जो जीवन की जंग छोटी मोटी दिक्कतों से हार गये हैं। जिनके हौसले पस्त हैं उनके लिए भी इनकी हिम्मत दाद देने वाली है। ये सभी कुछ बनना चाहते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें