आनंद राय , गोरखपुर
आमी नदी को छूकर किसी भी ओर से हवा बहती तो कटाई टीकर के लोगों की व्यथा बढ़ जाती है। गांव के बड़े बुजुर्ग अपने अतीत की यादों में खो जाते हैं। आधुनिक मिजाज के कुछ नये लड़के अपने पूर्वजों पर फक्र करने के बजाय सिर्फ उस घड़ी को कोसते हैं जब उन लोगों ने बसने के लिए इस तट को चुना। वाकई आमी नदी का प्रदूषण बढ़ने से दो दशक में इस गांव ने अपने सुख चैन के साथ ही बहुत कुछ गंवाया है। चार हजार आबादी वाले कटाई टीकर ग्राम सभा में मिश्रौलिया और मठिया जैसे दो टोले भी जुड़े हैं। गोरखपुर मुख्यालय से इस ग्राम सभा की दूरी 32 किलोमीटर है। आमी नदी इस गांव से महज पांच सौ मीटर दूरी पर बहती है और खास बात यह कि पश्चिम-पूरब और उत्तर तीनों तरफ से गांव को घेरे हुये है। औद्योगिक इकाइयों के अपजल से आमी प्रदूषित हुई तो इस गांव का सुख चैन दुश्र्वारियों में बदल गया। अब तो हवा उत्तर से बहे या पूरब से दुर्गध आनी ही है। जिस गांव में दो दशक पहले भूले से मच्छर नहीं आते थे वह गांव दिन में भी मच्छरों के हवाले रहता है। उठना-बैठना और सोना दूभर हो गया है। तीनों दिशाओं से आमी कटाई टीकर को दुख दे रही है। अमृत जैसी स्वच्छ और धवल आमी के चलते पहले इस गांव के हर घर में दूध की गंगा बहती थी। जबसे आमी को प्रदूषण का रोग लगा तबसे दूध का उत्पादन कम हो गया। यादव, ब्राह्मण, बेलदार, अनुसूचित जाति, कोइरी, केवट, गुप्ता और नाई समेत कई प्रमुख जातियों वाले इस गांव का सामाजिक ताना-बाना अभी बिल्कुल मजबूत है लेकिन नदी के प्रदूषित होने से सबका दुख एक हो गया है। 2000 में इस गांव में हीरा यादव प्रधान चुने गये थे। अगले चुनाव में यह सीट महिला के लिए आरक्षित हुई तो उनकी पत्नी रेशमा देवी प्रधान चुनी गयी। पर अब ग्राम सभा के कार्यक्रमों की देखरेख उनके पुत्र विजय बहादुर यादव करते हैं। सेण्टएण्ड्रयूज डिग्री कालेज से स्नातक विजय बहादुर यादव आमी की मुक्ति की लड़ाई में सक्रिय हो गये हैं। श्री यादव हैं कि इस गांव के लोग मुख्य रूप से गाय-भैंस पालकर दूध के कारोबार से अपनी जीविका चलाते थे लेकिन जबसे नदी दूषित हुई स्थिति बिगड़ गयी। अब नदी का पानी न तो पीने लायक है और न ही नहाने लायक। हालत यह है कि जिस कटाई टीकर गांव में पहले 6000 लीटर दूध का उत्पादन होता था वहां अब 2500 लीटर पर सिमट गया है। लोगों के रहन-सहन और दिनचर्या में आया बदलाव भी इसे बिल्कुल साफ कर देता है। 95 साल के खुट्टुर यादव पहले भैंस पालते थे। दिनेश यादव और बद्री यादव आठ से दस गाय-भैंस रखते थे। लेकिन अब उनके दरवाजे के सभी खूंटे उखड़ गये हैं। मिश्रौलिया के देवेन्द्र मिश्रा और ओमप्रकाश मिश्रा की सुने तो सबसे बड़ी दिक्कत तो नदी के दुर्गध की है। शाम होने के साथ ही बदबू का झोंका हर घर में घुस जाता है। किसी तरह लोग भोजन करते लेकिन रात को सो नहीं पाते। मच्छरों के हमले से सभी परेशान रहते हैं। कटाई टीकर गांव का पहले बड़ा नाम था। इस गांव के राम लखन यादव नामी गिरामी पहलवान थे। अखाड़े में उनकी कलाबाजी देखने के लिए लोग उमड़ पड़ते थे। चार-पांच साल पहले रामलखन यादव 105 साल की उम्र में मरे। गांव के लोग कहते हैं कि आमी के पानी की तासीर कुछ ऐसी थी कि यहां गठी हुई कद काठी के लोग पैदा होते। अब रामलखन यादव के गांव में नदी की धारा तो वैसे ही सलामत है लेकिन उसका अमृतत्व कहीं खो गया है। अपने आखिरी दिनों में रामलखन यादव आमी के प्रदूषण से बहुत बेचैन रहते थे। उनकी बेचैनी धीरे धीरे रंग ला रही है। गांव के नौजवान आमी को मुक्त करने के लिए संगठित हो गये हैं। आमी की लड़ाई को बल मिल रहा है और सभी एक स्वर से कहते हंै- हम आमी के लिए कोई भी कुर्बानी देने को तैयार हैं।
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