18 मई 2009

जनादेश से सहम गये सपा के शूरमा


आनंद राय गोरखपुर :

पन्द्रहवीं लोकसभा में मिले जनादेश से समाजवादी पार्टी के शूरमा सहम गये हैं। चुनाव परिणाम ने उन्हें आत्ममंथन करने पर मजबूर कर दिया है। पार्टी नेताओं का यह मानना है कि प्रत्याशी चयन और चुनावी रणनीति में चूक हुई वरना नतीजे कुछ और होते। गोरखपुर और बस्ती मण्डल में सपा के सभी पाये दरक गये हैं। दिलचस्प यह कि यहां सभी सीटों पर साफ हो जाने वाली सपा सिर्फ बस्ती में दूसरे नम्बर पर रही। पांच संसदीय क्षेत्रों में सपा को तीसरे और दो क्षेत्रों में चौथे तथा एक क्षेत्र में पांचवें स्थान पर संतोष करना पड़ा। इस अंचल की संसदीय परीक्षा में सपा के तीन विधायक भी उत्तीर्ण नहीं हो सके। समाजवादी पार्टी को सबसे बड़ा झटका गोरखपुर-बस्ती मण्डल में लगा है। इस बार यहां सपा कोई सीट नहीं जीत सकी। दूसरे नम्बर पर सिर्फ बस्ती में सपा के विधायक और पूर्व मंत्री राजकिशोर सिंह रहे लेकिन वे भी बसपा के विजयी उम्मीदवार अरविन्द चौधरी से एक लाख से अधिक मतों से पीछे रहे। खलीलाबाद में सपा के भालचंद यादव, बांसगांव में शारदा देवी, गोरखपुर में मनोज तिवारी मृदुल, देवरिया में मोहन सिंह और सलेमपुर में हरिकेवल प्रसाद तीसरे स्थान पर रहे। गोरखपुर में हमेशा दूसरे नम्बर पर कड़ा मुकाबला करने वाली सपा इस बार भोजपुरी स्टार लाने के बाद भी सिमट गयी। भाजपा के विजयी प्रत्याशी योगी आदित्यनाथ और सपा के मनोज तिवारी मृदुल के बीच तीन लाख से अधिक मतों का अंतर था। कुशीनगर में पूर्व मंत्री और विधायक ब्रह्माशंकर त्रिपाठी चौथे और डुमरियागंज में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और विधायक माता प्रसाद पाण्डेय पांचवे स्थान पर रहे। ब्रह्माशंकर और माता प्रसाद डेढ़ लाख से अधिक मतों के अंतर से हारे। दोनों उम्मीदवार लगभग साठ हजार मत पाकर रह गये। चौथे स्थान पर रहे महराजगंज के अजीत मणि को भी करारी हार का सामना करना पड़ा। गौर करें तो इन दोनों मण्डलों में सपा के तीन विधायक तकदीर आजमा रहे थे और ये अपनी सरकार में मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष तक रहे लेकिन प्रदर्शन बेहद खराब रहा। भोजपुरी फिल्म स्टार के लिए तो जयाप्रदा, जयाबच्चन, संजय दत्त, दिनेश लाल निरहुआ,मुकेश खन्ना और सुरेन्द्र पाल जैसे अभिनेता और दर्जन भर गायकों का भी जादू नहीं चल सका। इस अंचल में सपा के प्रति जनता के मन में कोई उत्साह नहीं रहा। और तो और पार्टी के थिंक टैंक समझे जाने वाले मोहन सिंह को भी देवरिया में तीसरे स्थान पर जाना पड़ा। बांसगांव में शारदा देवी को यद्यपि कम समय मिला फिर भी उन्होंने केन्द्रीय मंत्री महावीर प्रसाद को पीछे कर दिया। सपा को जनता ने पूरी तरह नकार दिया। इस संदर्भ में पार्टी के कुछ नेता चुप हैं तो कुछ अपनी चुप्पी अगर मगर लेकिन के साथ तोड़ते हैं। सपा के टिकट पर गोरखपुर से विधानसभा चुनाव लड़ चुके भानुप्रकाश मिश्र कहते हैं कि यह समय का फेर है और मतदाताओं को जल्द ही अहसास होगा कि उनसे चूक हुई है। पर समाजवादी युवजन सभा के राष्ट्रीय महासचिव ओ।पी. यादव कहते हैं कि हम मंथन कर रहे हैं और यह लग रहा है कि हमारा नियोजन सही नहीं था। वोटों के बिखराव से नुकसान हुआ। सपा लोहिया वाहिनी के राष्ट्रीय सचिव रजनीश यादव तो दो टूक कहते हैं कि सपा को सम्पूर्ण पिछड़ा वर्ग को एकजुट करके पार्टी को मजबूत करने की जरूरत है। लगभग सभी नेता मुखर तो नहीं हो रहे लेकिन अपने अपने समीकरण के हिसाब से प्रत्याशी चयन में भी गड़बड़ी बताते हैं। कुछ लोग संगठन को दोष देते हैं। सपा के अब तक के अतीत पर नजर डालें तो 1996 में पहली बार लोकसभा में सपा ने अपनी तकदीर आजमायी तब सलेमपुर, डुमरियागंज और बांसगांव में पार्टी को जीत मिली थी। 1998 में सिर्फ देवरिया में पार्टी जीत सकी लेकिन 1999 में महराजगंज और खलीलाबाद में पार्टी का खाता खुल गया। 2004 में भी सलेमपुर और देवरिया में पार्टी का वजूद बना रहा लेकिन इस बार के परिणाम ने पूरी तरह सफाया कर दिया। वजूद में आने के बाद यह पहला अवसर है जब सपा को इतनी करारी चोट मिली है।

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