आनंद राय, गोरखपुर
लोकतंत्र के उत्सव को सजाने संवारने की इस बार खूब कोशिश हुई लेकिन कारगर साबित नहीं हुई। कहीं निजी जरूरतें भारी पड़ीं तो कहीं अव्यवस्था से उपजी ऊब। जिनके दम से जम्हूरियत जिंदा है वही उदास दिखे। अपनी बेचैनी और ऊब छिपाते हुए कुछ बूथ तक पहुंचे भी मगर दूसरों के लिए प्रेरणा का सबब नहीं बन सके। पंद्रहवीं लोकसभा के गठन की रस्मअदाएगी पूरी हो गई।
बैसाख की तपती दोपहरी में वोट की फसल उगाने की खूब कोशिश हुई। उड़न खटोले से उड़कर आए रहनुमाओं ने बड़ा जोर दिया, लेकिन वोट प्रतिशत देखें तो आधे से अधिक लोग अपने घरों से नहीं निकले। सुबह मौसम अनुकूल रहने के बाद भी गति बहुत धीमी थी। निर्वाचन संपन्न कराने में लगे गीडा के मुख्य कार्यपालक अधिकारी पीके श्रीवास्तव से सुबह नौ बजे बातचीत की तो पता चला गोरखपुर जिले में सिर्फ सात फीसदी वोट पड़े थे। सड़क के किनारे मतदान केंद्रों पर जुटे कुछ लोगों को देखा लेकिन हर बार की तरह कतार नहीं दिखी। 11 बजे तक गोरखपुर जिले में सिर्फ 16.3 प्रतिशत वोट पड़े थे। प्राथमिक विद्यालय बिशुनपुर में भगवा रंग में रंगे रामदरश और रामसेवक मिले। वोट पड़ने की रफ्तार कम क्यों है यह पूछने पर उनका कहना था- कटिया दंवरी का मौसम है इसलिए लोग अपना काम निपटा रहे हैं। फिर भी वोट पड़ रहे हैं।
कौड़ीराम कस्बे में अधिकांश दुकानें खुली थी तो माहौल गुलजार था लेकिन बांसगांव पहुंचने पर सन्नाटे ने स्वागत किया। सन्नाटे को चीरते छह साल के दो छोटे बच्चे गलबहियां करते हुए अपने घर आ रहे थे। आदित्य और सत्यम नाम के ये बच्चे वोट का मेला देखने गए थे। लगा कि बड़ों से बेहतर तो यही बच्चे हैं। नगर क्षेत्र बांसगांव के ही प्राथमिक विद्यालय मरवटिया के बूथ का सन्नाटा लोकतंत्र के इस पर्व को मुंह चिढ़ा रहा था। पास के परिषदीय विद्यालय के शिक्षक संजय सिंह ने जब यह आशय समझा तो बोल पड़े- सुबह तो ठीक वोट पड़ा है। बगल की चाय की दुकान पर बैठे ड्राईवर लालू गौड़ समेत कई अन्य लोग हार जीत की गणित में मशगूल थे लेकिन उनकी आवाज में कोई सियासी ताप नहीं था। आगे बढ़ने पर सरहद बदल गई और बभनौली से संतकबीरनगर लोकसभा क्षेत्र के खजनी विधानसभा क्षेत्र की सीमा शुरू हो गई।
माल्हनपार की ओर जाने वाली सड़क पर कलकत्ता और कटिहार से आये मजूरे काम करते मिले। उन्हें इस पर्व का कोई मतलब ही नहीं मालूम। इनमें कक्षा पांच तक पढ़े दस साल के फर्रुख और उसी की उम्र के जबेरुद्दीन, कासिम, अंसार उल जैसे बच्चों के पेट की आग सियासी तापमान पर भारी थी। कुछ दूर के सफर के बाद फिर चुनावी क्षेत्र शुरू हो गया। यह इलाका पहले धुरियापार का था जो अब चिल्लूपार विधानसभा क्षेत्र में शामिल है। प्राथमिक विद्यालय देवापार में डेढ़ बजे तक सन्नाटा था। प्राथमिक विद्यालय गजपुर में वोट डालते लोग कोशिश में थे सभी लोग घर से निकल जाएं लेकिन बैसाख की आंच बहुतों की राह रोके थी। हरिलालपुरा का भी हाल कुछ ऐसा ही था। प्राथमिक विद्यालय कूड़ाभरत में तो दोपहर डेढ़ बजे तक 400 वोट पड़ चके थे। लेकिन गांव के बच्चन त्रिपाठी जैसे लोगों की चिंता यही थी कि अब वोट के प्रति लोग उत्साहित नहीं हैं। प्राथमिक विद्यालय देईडिहा में भी खामोशी ओढ़े मतदान कर्मी ऊंघ रहे थे। गोपालपुर आदि जगहों की भी स्थिति कुछ बेहतर नहीं थी। गोला जैसे कस्बे में 18 प्रतिशत वोट पड़ा था और यहां मैाजूद रणविजय चंद वोट कम पड़ने पर चिंता जता रहे थे। बड़हलगंज के उत्साही नौजवान गौरव दुबे खुद तो सक्रिय थे ही वे दूसरों को भी सूचनाएं दे रहे थे। प्राथमिक विद्यालय गाजेगड़हा में कुल 1167 वोटर हैं। पर 2.10 बजे तक यहां सिर्फ 340 वोट पड़े थे। उदासी का यह मंजर तो इसी से प्रमाणित होता है कि एक बजे तक बांसगांव में 22 प्रतिशत और गोरखपुर में 28 प्रतिशत वेाट पड़े थे। अलबत्ता शाम को मतदान में थोड़ी तेजी आई।
प्राथमिक विद्यालय सोनइचा में भुवनेश्वर दुबे ने टिप्पणी दी- इ चुनाव के मौसम थोड़े हवे, सब आपन फसल काटि कि वोट रखाई। मन के किसी कोने में कोई तल्खी थी जो कुरेदते ही जुबां पर आ गयी। रमेश ने भी खेती किसानी की बात चलाई। प्राथमिक विद्यालय नेवादा में सवा तीन बजे तक 35 प्रतिशत वोट मिले थे। मतदान संपन्न कराने आए अधिकारी दरकते हुए लोकतंत्र को गौर से देख रहे थे और इवीएम पर टिकी उनकी निगाहें उनकी पीड़ा बयां कर रही थी। गगहा से गोरखपुर तक हर पोलिंग स्टेशन की कहानी कुछ हेर फेर के साथ एक जैसी ही दिखी। शाम पांच बजे पीके श्रीवास्तव ने बताया कि गोरखपुर में 49 प्रतिशत और बांसगांव में 40.06 प्रतिशत मतदान हुआ है। कुछ लोगों से इसकी वजह जाननी चाही तो उनका यही कहना था कि बांसगांव में सभी प्रत्याशी एक ही वर्ग के हैं इसलिए यहां तो जातीय उत्साह भी नहीं बन पाया।
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