2 दिस॰ 2008

अब लाशों का शहर बन गयी बंबई


बाईस साल पहले बंबई में खडा हूँ। रोजी रोटी की तलाश में। छोटी उम्र और बड़ी जिम्मेदारियों का बोझ लिए। मायानगरी में अपने मासूम बचपन के साथ ऊँचे और शायद कभी न पूरे होने वाले सपनों को लिए हुए। सोच कर ही रोमांच हो जाता है। इधर कई दिनों से मुम्बई आग में जल रही है और लोगों के दिल जल रहे हैं तो सोचता हूँ कोई तो लौटा दे मेरी बंबई। मेरी बंबई कह रहा हूँ तो डर भी लग रहा है। कहीं राज ठाकरे ने सुन ली तो खफा हो जायेंगे। बंबई तो उन्होंने अपने नाम बैनामा करा ली है। वोट की खेती कराने वाली सरकार उनके नाम रजिस्ट्री कर चुकी है और अब बंबई बंबई न होकर मुम्बई हो गयी है। कितना कुछ बदल गया है। सोचते हुए लगता है कि आख़िर किसने उस खूबसूरत फिजा को बिगाड़ दिया जो हमेशा जवान लगती थी। दो साल बंबई में रहा हूँ। भांडुप के तुलसी पाडामें । यहीं मेरी पीछे वाली चाल में नंदलाल सिंह प्रलय भी रहते थे। उन्हें सच बोलने के लिए अपनी जान गंवानी पडी। वे शब्दों के जादूगर थे। स्कूल में पढाते थे लेकिन अखबारों के लिए लिखते भी थे। जनसत्ता में राहुल देव ने उन्हें जोड़ा था। अचानक एक दिन उन्हें सच बोलने की कीमत चुकानी पडी और एक भइया और एक मराठी मानुष ने उनका पोस्टमार्टम करा दिया। प्रलय का जिक्र मैं इसलिए करना चाहता हूँ कि मेरी बात उनके साथ ही शुरू होती है। १९९१ में प्रलय मारे गए थे। मैं बंबई १९८७-८८ में था। तब विक्रोली के सुपर इन्गीनीयारिंग वर्क्स में काम करता था। सुबह ही रोजमर्रा की जरूरतों को पूरी करके सोनापुर से बस पकड़ता था। मुझे तब बस की भीड़ परेशान करती थी। ट्रेन में तो धक्के खाने से चक्कर आने लगते थे। उन दिनों प्रलय जी की कवितायें सुनता था और कई बार लगता कि वे जो कुछ लिख रहे हैं मेरे लिए ही लिख रहे हैं। विक्रोली के काम में मेरा मन नही लगता था। थक जाता था। सेठ का व्यवहार इतना ख़राब था कि मन दुखी हो जाता था। मैं जी एन सिंह से कहता। वे भभुआ के रहने वाले थे। मुझे अक्सर कहते थे कि अपने यहाँ के लोग गाँव में काम करना नही चाहते और यहाँ आकर चाकरी करते हैं। मैं अपने खेतों से बिछड़ने की सजा भुगत रहा था। एक दिन हिसाब लगाया तो गाँव की मेरी जमीने सेठ के कारोबार पर भारी थी। मन के कोने का अहंकार जगा और मैं विद्रोही हो गया। प्रलय ने मुझे प्रेरित किया। मैंने नौकरी छोड़ दी। आर्थिक दुश्वारियों से ऊब कर बंबई गया था अब कैसे लौटूं। कुछ दिनों तक घूमने के बाद मेरे मामा ने साकीनाका में टूथ ब्रश बनाने वाली एक कंपनी में मुझे काम पर लगवा दिया। यहाँ कभी कभी रात में ड्यूटी करने जाना होता था। दिन में घूमता था और पूरी बंबई को देखने लगा था। ऊँचे ऊँचे भवन जिन्हें देखने में गर्दन टेढी हो जाती थी। अठखेलियाँ करता समुद्र, भागते हुए लोग, मुम्बा देवी की जयकारा, गणपति वप्पा मोरिया, सुबह की गुनगुनी घूप, दिसम्बर में भी ठण्ड नही और दो रुपये में भरपेट भोजन। कटिंग चाय और पाव बड़ा। यही लगता कि यहाँ तो टाटा और आम आदमी सबके लिए जगह है। बंबई की यही खूबी मुझे प्रभावित करती और सोचता कि मेरा ठिकाना न बदले। मैंने बंबई क्यों छोड़ दी यह तो कभी बाद में बताउंगा लेकिन मैंने वहाँ रहते हुए जीवन का सलीका सीखा। मैंने बंबई में ब्लिट्ज के संस्थापक आर के करंजिया अभिन्दन देखा। उनके आगे महामहिम आर वेंकट रमन को श्रद्धानवत होते देखा। मैंने वहीं नंदकिसोर नौटियाल और राम मनोहर त्रिपाठी को हिन्दी पत्रकारिता के विकास का मंत्र देते सूना। कई मौकों पर शरद जोशी को व्यंग के बानों से बड़े बड़े लोगों को छलनी करते देखा। आज के कई दादाओं और जरायम की दुनिया के माफियाओं को आपस में गुफ्तगू करते देखा। सब कुछ मुझे रोमांचित करते और लगता कि अगर जहागीर की जगह मैं बादशाह होता तो कश्मीर की जगह बंबई के लिए कहता- गर बररुए जमीनअस्त हमीअस्तो हमीअस्तो हमीअस्त। बंबई मुझे ऊर्जित करती रही और भीड़ में अपने को बचाए रखने की ताकत भी देती रही है। अपने अस्तित्व की हिफाजत का मंत्र तो उस महानगरी ने ही दिया। आँधियों के इरादे अच्छे न होने के बाद भी यदि कोई दिया जलता रह जाए तो कहीं न कहीं कोई न कोई ऊर्जा जरूर है। यह ऊर्जा बंबई ने ही दी। प्रलय मारे गए तो मैं बंबई गया था। संवेदना हलक में फंस गयी थी। प्रलय के घर जितनी देर तक बैठा रहा उनकी बातें याद आती रही। घाटकोपर हिन्दी हाई स्कूल में उनके काव्य संग्र ह का लोकार्प्रण हुआ था। प्रलय कभी कभी विद्रोही बनाते थे तो कभी सवयम को पहचानने की ताकत देते थे। प्रलय ने कहा था- एक दिन ऐसा आयेगा, कि तुम बिल्कुल थिर हो जाओगे। हवा के झोंके आयेंगे गुजर जायेंगे, तुम्हारी लौ नही कापेंगी। दुःख आयेंगे सुख आयेंगे, तुम निष्कंप चलते रहोगे। सब छूट जायेगा क्योंकि तुमने अपने को पा लिया होगा। जिसने अपने को पा लिया वह व्यर्थ को पाने के लिए नही दौड़ता। मुझे याद है यह बात उन्होंने रजनीश के हवाले से कही थी लेकिन सन्दर्भ मुझे प्रेरित करना था। समय का दंत हमेशा कुछ न कुछ चुभोता रहता है और समय के साथ ही हम उसे भूल भी जाते हैं। मुम्बई अब पता नही कैसी हो गयी है। यहाँ अब तो राज ठाकरे की हुंकार और नफ़रत सुनाई पड़ती है। मुझे याद है कि १९९३ में जब बंबई में विस्फोट हुआ तो अजीब सा लगा था। शिवसेना के सैनिक दो चार दिन बाद विरोध में त्रिशूल और कतार लेकर सड़क पर आए थे। अब तो राज ठाकरे ने नफ़रत का ऐसा जहर भर दिया है कि उसमे ख़ुद अपना काला चेहरा पहचान नही पा रहे हैं। मुम्बई में तो अब लाशें गिनाते हुए लोग बचे हैं। आसुओं में डूबी उनकी चीत्कार बची है। एक माह पहले इस पूर्वांचल में मनसे के लोगों के हमले से मारे गए लोगों की लाश आ रही थी और इधर आतंकवादियों के बारूद से नहाई हुई लाशें आ रही हैं। मुम्बई से प्रेम की भाषा गायब हो गयी है। प्रेम करो तब तो प्रेम को जानोगे। अब तो मुम्बई में इंसान के हाथों इंसान के लिए मौत बाँटीं जा रही है। अमृता प्रीतम की एक रचना मुझे याद आती है-कभी तो कोई इन दीवारों से पूछे कि कैसे मोहब्बत गुनाह बन गयी है। यह मिट्टी का रिश्ता, यह पानी का रिश्ता यह आदम की लम्बी कहानी का रिश्ता जो मेरे और तेरे खुदा की गली थी वही आज लाशों की राह बन गयी है..... । मुम्बई में लाशें ही लाशें हैं। वहाँ की आबादी वीरानों का दास्ताँ लिख रही है। वहाँ के संगीत सन्नाटों में तब्दील हो गए हैं। और हमेशा रोशनी में नहाई रहने वाली मुम्बई अंधेरे की गिरफ्त में है। मुझे नरीमन प्वाइंट, गेटवे आफ इंडिया, ताज से लेकर अपने चाल की बावडी और संडास के लिए लम्बी कतारें याद आ रही हैं। मन में एक भरोसा है कि अभी लाख आतंक अपना फन फैलाए माया नगरी का कुछ नही होगा। फ़िर से उठकर चल देगी अपनी बंबई। यह कहते हुए -कह दो मुखालिफ हवाओं से कह दो मोहब्बत का deeyaa तो jalataa रहेगाyh ahle वतन है, यह ahle sukhaन है यह मिट्टी का रिश्ता तो khilataa रहेगा।

2 टिप्‍पणियां:

nitu ने कहा…

Bhaiya Bombay ke baare me aapka dard dil ko chune wala hai; is article me bombay ka dard to hai hi wahi aapke niji strugle ke baare me bhi bahut kuch janane ka awasar mila;
aapke liye meri dua hai ki aap safalata ki har manjil ko prapt kare;
is lekh me sabse achaa laga Bombay ko Bombay hi likhna; sach much kuch tatha kathit logo ke kahane par Bombay mumbai nahi ho sakati hai;

RAJNISH PARIHAR ने कहा…

mumbai ka sahi chitran kiya hai aapne....

..............................
Bookmark and Share