16 नव॰ 2008

इनकी व्यथा के लिए मुझे शब्द चाहिए


चाहता हूँ इनके लिए कुछ लिखूं पर मेरे पास शब्द नही हैं। दैनिक जागरण के ११ नवम्बर के अंक में इनसे सम्बंधित मेरी एक रिपोर्ट छपी है लेकिन उससे ख़ुद मेरे मन को तसल्ली नही है। ये लोग कुदरत के सताए हुए हैं। एक परिवार की दो पीढियों को ऐसी सजा मिली किआंखों से खून के आंसू आ जाते हैं। गोरखपुर जिले के पिपराइच विकास खंड के एकला गाँव का रामलाल बेहद गरीब है। बीस साल पहले शारदा नाम की महिला से उसकी शादी हुई। इस समय उसके पाँच बच्चे हैं। इनमे एक बेटी है जो आँख से अंधी है और चार बेटे जिनकी शक्ल देखकर लगता है कि वे आदिमानव युग के हैं। सब मंदबुद्धि के हैं। ख़ुद कपडा नही पहन सकते। घर में उधम मचाते हैं। गरीबी अलग से मुश्किल खडी की है। बेटी की आँख की रोशनी लाने के लिए रामलाल अपनी १६ डिसमिल जमीन बेच चुका है। दिन भर की मेहनत मजूरी से घर की रोजी चलती है। जिस दिन रामलाल और शारदा की काम कराने की ताकत ख़त्म हो जायेगी उस दिन इस कुनबे की रोजी रोटी कैसे चलेगी। हमने ऐसे बहुत से लोगों की तकलीफ और दुःख दर्द को अपनी ख़बर के लिए करीब से देखा है लेकिन यह तो ऐसा दर्द है जो मुझे कई दिनों से परेशान किए है। हो सकता है कोई शक्ति उन्हें जीवन की राह दिखाए लेकिन अभी तो कंही से कोई उम्मीद नजर नही आ रही है। इस परिवार के लिए जब तलक भोर का सूरज नजर नही आता मुझे अंधेरों से बगावत करने के लिए ताकत चाहिए। मैं इस बगावत के लिए शब्द तलाश रहा हूँ। शायद मिल जाएँ और उनकी व्यथा को अक्षर अक्षर जोड़ सकूं।

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