12 जुल॰ 2008

फुर्सत नही मिलती


संजीव फुर्सत नही मिलती कि हुबली आ सकूं। मुझे देहरादून की बहुत याद आती है। बस आप जहाँ भी रहो खुश रहो। बस यही कहना चाहूँगा कि-

मंजिल उन्ही को मिलती है जिनके सपनो में जान होती है।

पंख से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है। मेल से तस्वीर मिली अच्छी लगी। उसे ही पोस्ट कर रहा हूँ।

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