3 मार्च 2008

याद आए फिराक


फिराक गोरखपुरी की याद में प्रेस क्लब ने एक समारोह किया। प्रोफेसर परमानन्द मुख्य अतिथि थे। कार्यक्रम की सदारत जुगानी भाई ने की और संचालन कर रहे मिथिलेश द्विवेदी ने कार्यक्रम को नई ऊंचाई दी। आयोजन के सूत्रधार नवनीत त्रिपाठी ने साहित्यकारों और पत्रकारों को फिराक के बहाने एक मंच पर एकत्र किया। हम सब उनके बुलावे पर ही गए। सबसे खास बात देवेन्द्र आर्य ने कही । वे बोले- इधर कई सालों से फिराक चित्रेगुप्त मन्दिर में कैद थे। गोरखपुर प्रेस क्लब ने उन्हें चित्रगुप्त मन्दिर से बाहर निकाला है। इसके लिए नवनीत त्रिपाठी की सराहना हुई। परमानन्द, जुगानी भाई और करीब करीब सभी वक्ताओं ने आयोजन की सराहना की। जिन्हें आयोजन अच्छा नही लगा वे नाक भौं सिकोड़ते रहे। ऐसे लोग कुछ भी करें अपनी बला से लेकिन अशोक चौधरी जैसे लोग ऐसे मौके कहाँ चुकते। चौधरी ने इस आयोजन को साम्प्रदायिकता के खिलाफ हथियार बना दिया। यही बात मुझे भी बहुत अच्छी लगी और हमने भी इसे बात पर जोर दियासाम्प्रदायिकता से लड़ने के लिए फिराक के शब्द हमारी ताकत हैं। उन्हें सहेजने की जरूरत है। प्रेस क्लब की कार्यकारिणी इसके लिए बधाई के योग्य है।

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