14 फ़र॰ 2008

मोबाइल और मुसीबत


अखबार की नौकरी और ख़बरों से जूझना। अब किससे कहे अपन की गाड़ी मजे से चल रही है। दिन भर की चिल पों से मन भर जाता है। लोग- बाग़ चैन से कहा जीने देते हैं। ये ससुरी जबसे मोबाइल चली हर आदमी लोकेसन लेने लगा है। छूटते ही बस एक सवाल कहा हो। बीवी के साथ रहो तो बच्चे की फीस जमा कर रहे हो तो और नौकरी बजा रहे हो तो लोग सीने पर सवार रहना चाहते है। किसी को सरदर्द हो तो भी, किसी का बैंक में खाता नही खुल रहा हो तो भी और कोई की गाड़ी पंचर हो गई तो भी बस एक आवाज दिए और हाजिर हो जावो। अभी एक साहब ने दन से मोबाइल बजा दी बोले कहा हो। काम पूछा तो भड़क गए। कहने लगे बताने में कोई दिक्कत हो रही है क्या। नही भैये अपना काम बताओ। काम क्या है जल्दी में दिल्ली जाना पड़ rahaa है। रिजर्वेशन नही हो पाया। किसी पहचान वाले से बोल दो लेता जाए। मैंने कहा अब इतनी रात गए किस किस पहचान वाले को खोजू। साहब बिफर पड़े। लगा मोबाइल में ही मेरे प्राण ले लेंगे। गुस्सा सातवें आस्मान पर पहुँच गया। एक बार रात में मेरे लिए ४० किलोमीटर की यात्रा किए थे। लगे याद दिलाने। मुझे तुरंत याद आया की अरे इन जनाब का तो कर्ज हमने चुकाया ही नही। मन मसोस कर स्टेसन पहुंचा। घर से स्टेसhन की ३ किलोमीटर की दूरी वह भी इस ठंड में दिक्कत तो हुई लेकिन खुश था चलो एक आदमी के कर्ज से तो मुक्त हुआ। अब स्टेसन पर एक नयी मुसीबत अपने परिचीत साथी नशे मी धुत मदिरा बहाने को आतुर। भैये दो ghoot le लो। साथ में जिन साहब को लेकर गया था उन्हें तो यह पता ही नही की हमने भी हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला को कभी कभी पढ़ लिया है। पर यह भी नही चाहता की वे इस बात को समझें। हल्ला मचाकर हमे पियक्कड़ बना देंगे। मैं जितना ही छिपाने की कोशिश करू दुसरे वाले भाई साहब लगे जोर मारने। अब उनसे ज्यों कहू मैं नही लेता रोने लगते। अपने संबंधों का वास्ता देकर एक सवाल करते अब हमसे मतलब नही रखना है तो मत लिजी। वे साहब हैं तो बड़े काम के लेकिन वे तो अपने पूरे जश में थे। मैं दुविधा में कभी उनको देखू और कभी दिल्ली जाने वाले भाई को। एक टी टी दिखे। मेरे बहुत पहचान के तो नही लेकिन मेरी लाज रखे। मेरी कई ख़बरों के बरे में बता गए। साहब को ले जाने की हामी भर लिए। सीट का नम्बर बता दिया। उन्हें विदा करके मैं बमुश्किल दस कदम चला हूँगा तभी ऊहोनें मोबाइल पर फिर घंटी बजा दी। बोले एक मिनट ज़रा आना। गुस्सा तो बहुत आया फिर भी गया। इधर दूसरे वाले भाई साहब फिर पीछे हो लिए। मैंने एक मिनट ठहरने का अनुरोध किया और फिर मुसीबत से पीछा छुडाने की आखिरी जुगत लगाने में जुट गया। भाई ने कहा यार थोडा बहुत लेते हो क्या। बहुत ठंड है। मैं तो ऐसे मौकों पर रखता हू। घर से बच्चों से बोल कर गया था की जल्दी आऊँगा। सो दोनों भाइयों को एक साथ जोडा और बार बार छमा मांगी। फिर आराम से साथ बैठने का भरोसा दिलाया और घर लौट आया। श्रीमती जी ने कहा इतनी देर तक किसकी सेवा में रहे। मैं किसका नाम बताता। हर आदमी जिससे मैं बंधा हू उसका कर्जदार हू। मैं अपनी पीडा किस्से कहूँ। यह तो मेरे जीवन का रोज का हिस्सा है। आज सोच रहा हू की मोबाइल फ़ोन बंद रखूं और एक अलग से नम्बर रख लू। पर यह तो समाधान नही हुआ। वैसे भी फ़ोन बंद हुआ तो आफिस वाले कहाजीने देंगे।

1 टिप्पणी:

bagi ने कहा…

bhai apka dard sabaka dard hai.mo. ne chain to chhina hi hai sahaj manveey riston ko bhi MASHINI bana diya hai. humane ak dusare se milana chhod diya hai. mo. pur bat kar farig ho lete hain. is BAT yantra ne dilon ki duriyan jayada kar di hai sath hi rishton ke bich ANDRIK sanvednaoo ko bhothara bana diya hai.

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